संपूर्ण महागाथा मराठाशाहीची
संग्राहक ::विनोद जाधव
हिंदू क्षत्रिय मराठा सातवाहन वंश की संक्षिप्त जानकारी।
पोस्तसांभार :: सुयश शिर्केसातवाहन
(शिवभगवान सातवाहन राजाओं के वंशज)©®
हिंदू क्षत्रिय मराठा सातवाहन राजे महाराष्ट्र के संस्थापक-निर्माते हैं।
महाराष्ट्र राज्य सातवाहन राजाओं द्वारा पूर्व-क्षेम विज्ञापन अवधि में बनाया गया था।
महाराष्ट्र की स्थापना हजारों लाखों साल पहले हुई थी और हिंदू क्षत्रिय मराठा सातवाहन राजा महाराष्ट्र के निर्माता हैं।
महाराष्ट्र के आराध्यदैवत कुलदैवत देवता शिवभगवान महादेव शंकर पार्वती हैं।
सातवाहन राजा शिवभगवान हैं। सातवाहन राजा शिवभगवान (महादेव) के वंशज हैं, इसलिए शिवभगवान सातवाहन नाम पड़ा हें।
सातवाहन राजा हिंदू वैदिक आर्य सनातनी क्षत्रिय मराठा समुदाय के राजा हैं। वह हिंदू वैदिक आर्य सनातनी धर्म यानी हिंदू धर्म के रक्षक हैं।
९६ कुल मराठा सातवाहन राजाओं द्वारा बनाए गए थे।
मल्लरठ्ठ से ल्ल की जगह र के रूप में किया गया और मराठ्ठा-मराठा (महारठ्ठा-मराठा) जाति किया गया। सातवाहन राजा क्षत्रिय मराठा जाति के निर्माकर्ता हैं।
ऋग्वेद मे महाराष्ट्र को महान राष्ट्र महाराष्ट्र (क्षत्रिय मराठा साम्राज्य) बताया गया हे.
महाराष्ट्र का अर्थ है मराठा और मराठा का अर्थ है महाराष्ट्र और महाराष्ट्र का अर्थ है सातवाहन साम्राज्य।
महाराष्ट्र राज्य अतीत में एक स्वतंत्र राज्य रहा है और आज भी है। सातवाहन राजे महाराष्ट्र के मालिक भी हैं।
महाराष्ट्र मे सबसे पहिले कदम रखने वाला वंश सातवाहन वंश हि था.
प्रभू श्रीराम के काल मे भी महाराष्ट्र मे सातवाहन शासन था. राजा का नाम मदन सातवाहन था. तब महाजनपद कि व्यवस्था थी महाराष्ट्र मे अश्मक महाजनपद था ओर राजधानी अश्मकनगर प्रतिष्ठान(पैठण) थी।
सातवाहन राजाओं का शासन आगे पिढीयों तक रहा था।
मौर्य काल में भी, महाराष्ट्र में सातवाहन राजाओं का शासन था। सातवाहन राजा किसी के भी मांडलिकत्व मे नहीं थे, उनका शुरू से ही अपना स्वतंत्र अस्तित्व था।
सिमुक सातवाहन ने कन्व वंश के सम्राट को हराकर महाराष्ट्र के जुन्नर, पैठण को अपनी राजधानी बनाया. राजा सिमुक इन्हें सिंधुक भी कहा जाता है सातवाहन का सीधा अर्थ होता है सूर्य सात - वाहन यानी कि सात घोड़े जो भगवान सूर्य जी के रथ को होते हैं यह सूर्यवंशी राजवंश था।
जब शिर्केसातवाहन वंश के गौतमीपुत्र सातवाहन राजा ने विदेशी शक राजा को हराकर महाराष्ट्र को विदेशी आक्रमणों से मुक्त किया और गुडीपाडवा उत्सव की शुरुआत की। उसी त्यौहार को हिंदू मराठी नववर्ष और सातवाहन राज्याभिषेक समारोह के रूप में जाना जाता है,
सातवाहन वंश का कार्यकाल पूर्व-क्षेम विज्ञापन अवधि (ईस्वी पूर्व) से लेकर चालू होता हे क्षेम विज्ञापण बाद (इसवी बाद) भी सातवाहन राजाओं ने राज किया ओर उसके बाद भी सातवाहन साम्राज्य था ओर आज भी सातवाहन साम्राज्य हे.
सातवाहन साम्राज्य आज के महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश,तेलंगणा, तमिलनाडू, केरल, दक्षिण गुजरात का कुछ हिस्सा दक्षिण मध्यप्रदेश का कुछ हिस्सा, दक्षिण छत्तीसगड का कुछ हिस्सा, दक्षिण ओडीसा का कुछ हिस्सा लेकर एक बड़ा विशाल साम्राज्य था। और आज भी है।
सातवाहन राजाओं ने शक, यवन (आगरी/कालण), कुषाण और हूण सहित अन्य विदेशी आक्रमणों को हराकर महाराष्ट्र और पूरे हिंदुस्तान की रक्षा की थी।
सातवाहन काल में प्राकृत भाषा का अर्थ मराठी भाषा है और साहित्य में भी प्रगति हुई. इस काल में राजकीय भाषा प्राकृत (मराठी भाषा),संस्कृत थी और प्रचलित लिपि ब्राह्मी,संस्कृत थी. उन्होंने अपने सभी अभिलेख, प्राकृत भाषा तथा ब्राह्मी लिपि ओर संस्कृत में ही लिखवाये. हाल नामक सातवाहन राजा प्राकृत भाषा का प्रसिद्ध कवि था. सम्भवतः उसी ने श्रृंगार रस की गाथा सप्तशती की रचना की थी. इसमें 700 से भी ज्यादा पद्य थे जो प्राकृत में रचे गये थे. सम्भवतः गुणाढ्य की वृहतकथा भी सातवाहन के काल में लिखी गयी. तमिल साहित्य में भी कुछ रचनाएं इसी युग में शुरू की थी. इसी काल में संस्कृत व्याकरण की पुस्तक “कातंत्र” संघवर्मन नामक विद्वान ने लिखा.
सातवाहन राज्य के लोग विभिन्न उद्योगों से अपना जीवनयापन करते थे। कृषि और पशुपालन के अलावा, विभिन्न व्यवसाय भी विकसित किए गए। उन्होंने विभिन्न प्रकार के धातुओं से विभिन्न वस्तुओं और औजारों को बनाया, लोहे के औजारों ने खेत के औजार के साथ-साथ घरेलू वस्तुओं को भी बनाया।
क्षेम विज्ञापन बाद पहली शताब्दी (पहली शताब्दी ईस्वी) में कोलार के स्वर्ण क्षेत्र में प्राचीन सोने की खानों के साक्ष्य मिले हैं। सातवाहनों ने सोने को कीमती धातु के रूप में इस्तेमाल किया होगा। (क्योंकि वे कुषाणों की तरह सोने के सिक्के नहीं चलाते थे)। इनमें मिट्टी के बर्तनों, इत्र बनाने, खानों से धातु निष्कर्षण, हाथी दांत का काम, सूती और रेशम से कपड़ा बनाना, चमड़ा और इससे विभिन्न "वस्तुएं" बनाना, दवाइयाँ बनाना, डाई, सोना, तांबा, मोती और आभूषण आदि बनाना शामिल हैं। उद्योग में शामिल थे। इस राज्य में, विभिन्न ट्रेडमैन ने अपने स्वयं के सामूहिक संगठनों या बर्तनों, मिट्टी के बर्तनों (बुनाई), तिलहन (तेल), कणमास्कर (कांस्य के बर्तन), गांधी (इत्र के निर्माता और विक्रेता) का गठन किया। उन्होंने आधुनिक बैंकों के लिए भी काम किया। ये श्रेणियां अन्य लोगों के धन को ब्याज पर रखती थीं और दूसरों को उनका ब्याज देती थीं। इन श्रेणियों ने समाज में कारीगरों की प्रतिष्ठा और सुरक्षा अर्जित की। प्रत्येक श्रेणी का अपना प्रतीक (टोटेम), टैगमा, शीशा लगाना और सील होना था। यह संगठन बिना किसी भेदभाव के सभी भक्तों को दान और दान देता था और इसकी अध्यक्षता सातवाहन राजे ने की थी जिसके लिए सातवाहन राज का सातवाहन उद्योग व्यवसाय (महाराष्ट्र राज्य: उद्योग और व्यवसाय प्राधिकरण) के नियंत्रण में था। सातवाहन उद्योग व्यवसाय प्राधिकरण (सातवाहन इंडस्ट्रीज) के अध्यक्ष सुयश शिर्केसातवाहन (सातवाहन राजाओं के वंशज) हैं।
सातवाहन युग में मंत्रिपरिषद की व्यवस्था थी. इस बात की जानकारी हमें रुद्रदामा के अभिलेख से मिलती है. इसके अभिलेख में पति सचिवों तथा कम सचिवों का उल्लेख है जो मंत्रिपरिषद के अस्तित्व को सिद्ध करती है. मंत्रियों की सहायता से राजा अलंघ की प्राप्ति, प्राप्त की रक्षा, रक्षित की वृद्धि और वृद्धि का योग्य पात्रों में वितरण करता था.
सातवाहन राजाओं ने मौर्य सम्राट अशोककालीन कुछ प्रशासनिक इकाइयों को बनाए रखा. उनके समय में जिला को अशोक के काल की तरह आहार ही कहा जाता था. प्रत्येक जनपद का शासन एक अमात्य, सैनिक राज्यपाल अथवा स्थानीय सरदारों के पास होता था जो महाभोज या अमात्य और महामात्य कहलाते थे. यह विचार ठीक जान पड़ता है क्योंकि शिर्केसातवाहनों के प्रशासन में हम सैनिक और सामंती तत्व भी पाते हैं. यह महत्त्वपूर्ण बात है कि सेनापति को प्रान्त शासक नियुक्त किया जाता था. इस सम्बन्ध में एक इतिहासकार का कहना है “चूंकि दक्कन के कबीलाई लोगों का पूरी तरह न तो हिन्दूकरण हुआ था और न ही वे अपने को नए शासन के अनुकूल बना पाए थे इसलिए उन्हें सैनिक शासन के अधीन रखना आवश्यक था. गांवों का शासन राज्य द्वारा नियुक्त अधिकारी के पास होता था. उसे गौल्मिक कहा जाता था. वह एक ऐसे सैनिक का प्रधान होता था जिसमें नौ रथ, हाथी, पच्चीस घोड़े और पैतालीस पैदल सैनिक होते थे. उसका कर्त्तव्य था कि वह कर एकत्र करे तथा शान्ति बनाये रखे. सातवाहन राज्य में नगरों की भी कमी नहीं थी. वहीँ नगर की शासन व्यवस्था नगर व्यवहारिक चलाता था जो शान्ति बनाये रखने के साथ-साथ शिल्प कार्यों की देखभाल तथा शिल्पियों एवं व्यापारियों से कर वसूल करता था.
भूमि-कर, व्यापारियों तथा शिल्पियों पर लगने वाले कर तथा जुर्माने राज्य की आय के प्रमुख साधन थे. दण्ड विधान प्राय: कठोर था लेकिन वासिष्टीपुत्र श्रीपुलभावि ने अपराधियों के प्रति नर्मी का व्यवहार किया. कुछ उल्लेखों के आधार पर कहा जाता है कि ब्राह्मणों को अपराधी होने पर कम दण्ड तथा उनके विरूद्ध अपराध करने वाले को कठोर दण्ड दिया जाता था.
हम सभी आज सुरक्षित हैं क्योंकि सातवाहन राजाओं ने शक, यवन (आगरी/काळण), कुषाण और हूण सहित अन्य विदेशी आक्रमणों को हराकर महाराष्ट्र और पूरे हिंदुस्तान की रक्षा की थी।
ओर आजभी हम सब हिंदुस्तानी देश वासियोंको यही करना हें।
हिंदू क्षत्रिय मराठा, ब्राह्मण, राजपूत, अहीर, जाट, पटेल, गुर्जर और आदिवासी समुदाय के सदस्यों से हिंदू क्षत्रिय मराठा सातवाहन साम्राज्य की रक्षा के लिए एकजुट होना चाहीए और सुयश शिर्केसातवाहन ( शिवभगवान सातवाहनओं के वंशज) के मराठा सातवाहन समाज सेना में शामिल होने का आग्रह किया जाता है। ओर समुदाय के सदस्यों को वेबसाइट
https://play.google.com/store/apps/details... पर भी सामिल होना चाहिए।
सुयश शिर्केसातवाहन(शिवभगवान सातवाहन राजाओं के वंशज)©®